AAP's growing popularity in Varanashi causes BJP party workers to lose their tempers...
बीजेपी कार्यकर्ताओं द्वारा बनारस के अस्सी घाट पर लोकतान्त्रिक मूल्यों का आदर सम्मान ...
बीजेपी कार्यकर्ताओं ने कुछ दिनों पहले ही आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार और दिल्ली के भूतपूर्व कानूनमंत्री सोमनाथ भारती पर हमला करके स्पष्ट कर दिया था कि वे लोकतान्त्रिक मूल्यों का हमेशा यूँ ही पतन करते रहेंगे। लोकतंत्र में हिंसा का बिल्कुल भी स्थान नहीं, पर फिर भी हार की बौखलाहट और चिंता में बीजेपी के कार्यकर्ता अपने नैतिक और जनतान्त्रिक मूल्योँ का हनन करते ही रहते हैं। हाल ही में आप कार्यकर्ता अंकित लाल और नन्दन मिश्रा को अससी घाट पर बीजेपी कार्यकर्ताओं द्वारा बुरी तरह पीटा गया।
अपनी विचारधारा, नीतियों, सद्कर्मो और शब्दों के बलपर चुनाव जीतने की बजाय बीजेपी और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने हमेशा ही कानूनों का उलंघन किया है। अमेठी में जैसे कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कुमार विश्वास और उसके समर्थकों पर आकर्मण करके अपनी घटिया सभ्यता का परिचय दिया था, ठीक वही इतिहास बीजेपी बनारस में दोहरा रही है। कभी सयाही फेंक कर, कभी पत्थर, कभी मुंह पर कालिख पोतकर, कभी हाथ उठाकार, कभी हिंसा का सहारा लेकर, कभी गाड़ियों के शीशे तोड़कर, कभी अपशब्दों का प्रयोग करके उन्होंने कई बार अपनी ओछी विचारधारा, संकीर्ण मानसिकता और गन्दी राजनीती का परिचय दिया है।
भारत में राजनैतिक स्तर का पतन और कितना नीचे जाकर रूकेंगा? क्या यही एक रास्ता बचा है इनके पास सत्ता हथियाने का? क्या लोकत्रांत्रिक प्रक्रिया में इन्हे तनिक भी विश्वाश नहीं? बनारस ने पहले कभी किसी चुनाव में इस तरह की हिंसा नहीं देखी। ये किस तरह की संस्कृति है जो बीजेपी वाराणसी की पवित्र धरती पर लेकर आ रही है ? क्या इन्ही हथकंडों के बल पर देश को प्रगति के पथ पर ले जाएँगे, कांग्रेस और बीजेपी के लोग?
पटियाला में भी आम आदमी उमीदवार डॉ धर्मवीर गांधी को शिरोमणी अकाली दल के राजेन्दर सिंह विर्क और उसकी कार्यकर्ताओं ने मिलकर गुस्से में इस बात पर बुरी तरह जख्मी कर दिया जब उन्हे लगा कि "आप" का उम्मीदवार उनकी वोट्स इलाके में कम कर रहा है। सत्ता के भूखे ये लोग कब ईमानदारी से राजनीती करना सीखेंगे ? ये भूख इन्सान को जानवर तक बना डालती है।
क्या इस देश में राजनैतिक गतिविधियाँ ठीक इसी तरह चलती रहेगी जैसे बरसों से चलती आई है ? क्या अब कभी इसमें बदलाव की उम्मीद नही की जा सकती? क्या देश इनके हाथों में फिर से सौंपा जा सकता है? क्या अब वो समय नहीं आ चुका है कि राजनीती की इस गन्दी परम्परा को सदा के लिये बदला जाये ? इसका अन्त किया जाये ? इसकी तिलांजली दी जाये? एक स्वच्छ और ईमानदार राजनीती की दिशा में कदम रखा जाये ?
इस वीडियो को देखकर आप स्वयं समझ जायेगें की 'आप' के कार्यकर्ताओं ने शराब को छुआ तक नहीं था जिसका घाटिया इलजाम बीजेपी ने अपनी साख के बचाव में इन निर्दोष लोगों पर मढा है। चुनाव आयोग ने एहतियातन बनारस में सुरक्षा बल बढा तो दिया है पर फ़िर से हिंसा की वारदात नहीँ होंगी कहा नही जा सकता क्योंकि यहां प्रधान मंत्री के दावेदार नरेन्द्र मोदी की प्रतिष्ठा दाँव पर जो लगी है। अगर यहाँ उनकी हार हुई तो बीजेपी में से ही, न जाने एक साथ कितने स्वर उठेंगे मोदी के खिलाफ़। अगर हार जाने का डर नहीं सताता तो दो जगह से चुनाव लड़ने की क्या आवश्यकता थी मोदी जी को? क्या यही मोदी जी की लहर है कि किसी पर हाथ उठाने की ज़रुरत पड़े, दो जगह चुनाव लड़ने के लिए मजबूर होना पड़े ?
THE REAL FACE OF TRUTH |
देश और देश के हालात बदलने के लिये देश के नेताओं का बदलना बेहद आवश्यक है।
देश को नयी दिशा देने के लिये देश में स्वच्छ राजनीती का होना बेहद आवश्यक है।