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देश वासियों की सुरक्षा या अपनी वोटो की सुरक्षा
दंगों की आंच पर चुनावी रोटियां सेंकना तो कोई हमारे राजनीतिज्ञों से सीखे। क्या इस देश में राजनीती ठीक ऐसे ही चलती रहेगी जैसे चलती आई है ? क्या इस देश कि जनता को ऐसे ही बेवकूफ बनाया जायेगा ? या देश में परिवर्तन भी आएगा कभी ? अब होश आया ? १७ दिनों बाद ? जब दंगे हुए थे कहाँ थे सब ?
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