अब इन आँखों से ये मंजर देखे नहीं जाते,
रोते हुए लोग जलते हुए घर देखे नहीं जाते..
ये कैसी शक्ल बना दी है मेरे अंजुमन की खुदा,
जितने लोग उतने ही खंजर देखे नहीं जाते..
अजीब सी तोहमत का मैं गवाह हुआ जाता हूँ,
इतने मासूम से हाथो में ये पत्थर देखे नहीं जाते..
सब अपनी अपनी रोटी सेकने में लगे रहते हैं,
किसी गरीब के जलते हाथ क्यूँकर देखे नहीं जाते..
कभी हिन्दू को भड़का दिया तो कभी मुस्लिम को,
इन सफ़ेद पोशो के ये दोहरे तेवर देखे नहीं जाते..
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